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Manoj Karn

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Life Poem

“कटी पतंग हु, कब्तलक हवा से लडू । बह चलू तो कब्तलक यू बह चलू । आसमां का ना रहा, ना रहा जमीका । कब्तलक अपने जमीर से ही बगावत करु ।”

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