Phylosophy poem

“खाईशों का पुलिंदा बनाये बैठा हूं । जिन्दगी को आज़माये बैठा हूं । रोज़ तिल तिल मरना छोड़ दिया हमने । जिंदगी से कई चोट खाये बैठा हूं ।”